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हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया : दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फ़ैसला दिया, अब ये मामला संविधान पीठ को भेजा जाएगा : रिपोर्ट

हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। 15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्कूलों में हिजाब बैन को लागू कर दिया था। इसी फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। इस मामले में दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला दिया है।

हिजाब विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की पीठ ने अलग-अलग फैसला सुनाया है। अब ये मामला संविधान पीठ को भेजा जाएगा। चीफ जस्टिस अब इसे किसी बड़े बेंच में लिस्ट करेंगे। जस्टिस गुप्ता ने याचिकाकर्ताओं की अपील को खारिज कर दिया। जस्टिस गुप्ता ने शुरू में ही बता दिया था कि हम दोनों जजों की राय अलग है। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि अपने फैसले में मैंने 11 सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में मैं कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखता हूं। वहीं, जस्टिस धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को गलत ठहराया और हिजाब बैन को खारिज कर दिया।

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हमारी राय अलग है। मेरे आदेश में 11 सवाल उठाए गए हैं। क्या इस मामले को संविधान बेंच को भेजा जाए? उन्होंने कहा कि सवाल ये है कि क्या कॉलेज मैनेजमेंट छात्रों के यूनिफॉर्म पर या हिजाब पहनने को लेकर कोई फैसला कर सकता है। हिजाब पर बैन लगाना क्या आर्टिकल 25 का उल्लंघन है। क्या आर्टिकल 19 और आर्टिकल 25 एक जगह ही है। क्या सरकार के आदेश से मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाई कोर्ट के हिजाब बैन के फैसले के खिलाफ दाखिल 26 अपील को खारिज कर दिया और हिजाब बैन के कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि क्या छात्राओं की ये मांग कि धार्मिक पहचान की चीजों को मूलभूत अधिकार माना जा सकता है? क्या सरकार के आदेश से शिक्षा का उद्देश्य सही मुकाम पर पहुंचती है। मेरे अनुसार इसका उत्तर ये है कि इस याचिका को खारिज कर दिया जाए।

जस्टिस धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए इसपर टिप्पणी भी की। जस्टिस धूलिया ने अपने फैसले में कहा कि लड़कियों की शिक्षा बेहद अहम मामला है। लड़कियां बेहद मुश्किल के बाद पढ़ने आती हैं।

जस्टिस धूलिया ने कहा कि इस फैसले में कुरान की व्याख्या करने की जरूरत नहीं है। लड़कियों के च्वाइस का सम्मान करना चाहिए। शिक्षा मिल सके ये जरूरी है न कि ये जरूरी है को उनको क्या ड्रेस पहनना चाहिए। जस्टिस धूलिया ने कहा कि कई इलाकों में लड़कियां स्कूल जाने से पहले घर का भी काम करती हैं। अगर हम इसपर बैन लगाते हैं तो लड़कियों की जिंदगी और मुश्किल होंगी। जस्टिस धूलिया ने कहा कि इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने सही अप्रोच नहीं अपनाया।