साहित्य

तरक्की……….वो समय बहुत पीछे छुट गया!

Tajinder Singh
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तरक्की ………..
बचपन में सुनता था कि दिल्ली , कलकत्ता में पानी भी खरीद कर पीना पड़ता है | बहुत हैरानी होती थी | कैसे शहर हैं और कैसे वहां के लोग, जो पानी भी खरीदकर पीते हैं| हमारे शहर में तो जगह जगह नल लगे है | और गर्मी में तो अलग अलग धार्मिक संस्थानों और सरकार द्वारा संचालित प्याऊ हर जगह खुल जाते है | यहाँ तक की स्टेशन पर भी रेलवे द्वारा ठन्डे पानी की व्यवस्था की जाती थी | जहां देखिये घड़े ही घड़े | सब मिल कर लगे रहते थे लोगों की प्यास बुझाने में |

प्यासे को पानी पिलाना एक बड़ा धर्म का काम समझा जाता था | मुझे याद है मेरे स्वर्गीय पिता जी किसी प्यासे को , गरीब को , राहगीर को , रिक्शेवाले को या मजदूर को केवल पानी देने पर नाराज़ हो जाते थे | कहते थे अगर घर में कुछ नहीं है तो साथ में गुड़ ही दे दो | कुछ दो जिसे खाकर वो पानी पिए। वर्ना क्या सोचेगा वो हमारे बारे में , हमारे संस्कार के बारे में |

वो समय बहुत पीछे छुट गया | इस बीच हमारे देश ने बहुत तरक्की कर ली | और अब हमारे सब शहर दिल्ली और कलकत्ता बन गए है | बोतलबंद पानी हर जगह उपलब्ध है | खरीदिये और पीजिये | पानी जैसी साधारण और सहज उपलब्ध चीज़ की ये हालत | पानी आज एक बहुत बड़ा व्यापार है | ढेरो लोग पानी से ही कमाने में लगे हैं।

सभी सरकारें जिनकी ये जिम्मेवारी थी , हमें साफ़ और शुद्ध पानी उपलब्ध करवाने की | वो कहती है पानी की कमी कहाँ है | पैसे दीजिये और पानी लीजिये | उसने बड़ी चालाकी से हमें बाज़ार के हवाले कर दिया | और इस बोतलबंद पानी की सहज उपलब्धता को हमें तरक्की कहना भी सिखा दिया | आपको होती होगी पर मुझे ऐसी तरक्की पर ख़ुशी नहीं होती | इस से अच्छे तो हम पिछड़े ही थे |

बचपन में मैंने आचार्य चतुरसेन का एक नावेल पढा था। ये कहानी उस समय की थी जब ट्रेने बहुत धीमे चला करती थी | और अपने शुरूआती दौर में ही थी | गर्मी के दिनों में एक ट्रेन एक्सीडेंट होने पर जब ट्रेन के यात्रियों को ये पता चलता है कि दो तीन दिनों तक इस निर्जन इलाके से निकलना संभव नहीं | कोई सरकारी सहायता यहां पहुंच नही सकती। और यहां से निकलने के लिए कोई सवारी भी उपलब्ध नहीं सिवाए इस ट्रेन के | तो ट्रेन में सवार एक सेठ जी सबसे पहले सबसे नजदीक गाँव में स्थित इकलौते कुँए को एक मोटी रकम देकर खरीद लेते है | अब उस कुएं पर सेठ जी का कब्जा है। लोग परेशान है पानी के लिए और सेठ परेशान है कमाने के लिए |
मुझे इस सेठ और सरकार में कोई अंतर नज़र नहीं आता |
आपको आता है क्या ???????????