देश

पिछले पांच वर्ष के दौरान सेना के 46960 जवानों/अधिकारियों ने नौकरी छोड़ दी, पांच वर्ष में 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या की : रिपोर्ट

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में नौकरी छोड़ने (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) के मामले बढ़ रहे हैं। बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल्स में पिछले पांच वर्ष के दौरान 46960 जवानों/अधिकारियों ने नौकरी छोड़ दी है। बीएसएफ में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले कर्मियों की संख्या 21860 है, जबकि सीआरपीएफ में यह आंकड़ा 12893 है। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है। साल 2011 से लेकर पिछले वर्ष तक 1532 खुदकुशी के मामले सामने आए हैं। कन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन ने उक्त मामलों में श्वेतपत्र जारी करने की मांग की है। इसके साथ ही एसोसिएशन ने उन कारणों का भी उल्लेख किया है, जिसके चलते किसी जवान को उक्त कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ता है।

आत्महत्याओं का दिल दहलाने वाला सिलसिला जारी

कन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह का कहना है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवानों में आत्महत्याओं का दिल दहलाने वाला सिलसिला जारी है। पिछले 13 वर्षों में जितने जवान शहीद हुए हैं, उनसे कहीं ज्यादा नफरी आत्मघाती कदम उठा कर जीवन लीला समाप्त करने वाले जवानों की है। अभी हाल ही में 155 बटालियन बीएसएफ के हवलदार मांगी लाल ने अफसरशाही से तंग आकर जीवन लीला समाप्त कर ली। उस मामले की जांच चल रही है। गत वर्ष 12 अगस्त से 4 सितंबर के बीच 10 जवानों द्वारा आत्महत्या करने के मामले प्रकाश में आए थे। बतौर रणबीर सिंह, ऐसे मामलों में विभागीय जांच के नाम पर लीपापोती होती है। यह कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि जवान अपनी किसी घरेलू समस्या के कारण परेशान था।

आत्महत्या के मामलों में वृद्धि, शर्म की बात

एसोसिएशन के महासचिव ने अपने बयान में कहा, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के जवान, संसद से लेकर सरहदों तक चाक चौबंद चौकसी के अलावा अचानक आने वाली प्राकृतिक विपदाओं में लोगों की जान माल की सुरक्षा करते हैं। राज्यों में कानून व्यवस्था बनाए रखने में वहां के पुलिस प्रशासन को विशेष सहयोग देते हैं। हवाई अड्डों, बंदरगाहों, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, महत्वपूर्ण औद्योगिक इकाइयों की सुरक्षा व समय-समय पर होने वाली चुनावों में निष्पक्ष भुमिका अदा करने वाले पैरामिलिट्री फोर्सेस के जवानों का पूरा राष्ट्र ऋणी है। पिछले 15-20 वर्षों से इन बलों में आत्महत्याओं के मामलों में वृद्धि होना, देशवासियों के लिए शर्म की बात है। गाहे बगाहे शूट आउट की छिटपुट घटनाएं भी हुई हैं। इसके लिए कौन सी व्यवस्था जिम्मेदार है। महासचिव रणबीर सिंह के मुताबिक, बॉडर आउट पोस्ट (बीओपी), नक्सल बहुल क्षेत्रों, उत्तर पूर्वी राज्यों, जम्मू कश्मीर व देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात जवानों के ड्यूटी घंटों में वृद्धि, कंपनी में जवानों की रिक्तियां, रात में पहरेदारी में नींद का पूरा न होना, समय पर छुट्टी का न मिलना, घर परिवार बीवी बच्चों से सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर रहना, आदि कारण भी जवान को परेशानी की तरफ ले जाते हैं।

जवान की परेशानी सुनने की बजाए दुत्कार

रणबीर सिंह के अनुसार, जवान अपनी ड्यूटी पर होता है। गांव में दबंगों द्वारा जवान के बीवी बच्चों पर बुरी नजर, जमीन जायदाद पर जबरन कब्जा, कंपनी कमांडर, डिप्टी कमांडेंट या अन्य कमान अधिकारियों द्वारा जवान की परेशानी सुनने की बजाए उन्हें दुत्कारे जाना, गाली गलौज व उनकी शान के खिलाफ भद्दे शब्दों का इस्तेमाल, ये कारण भी नौकरी छोड़ने या आत्महत्या की वजह बनते हैं। जवानों की सालाना एसीआर को बिना वजह खराब करना, जवान को अचानक बीमारी हालत में पूर्ण चिकित्सा न मिलना, 15 से 20 वर्षों तक एक ही रैंक में ड्यूटी देते रहना, यानी पदोन्नति का नहीं होना और मनचाही पोस्टिंग का नहीं मिलना, भी जवानों की परेशानी का कारण है। जवानों व अफसरों के बीच आपसी तालमेल का नहीं होना है। ड्यूटी की अधिकता, घर परिवार से दूरी के कारण मनोरोग की तरफ बढ़ना व स्वभाव में चिड़चिड़ापन के लक्षण, इससे भी जवानों की परेशानी बढ़ती है। जवानों के बच्चों के लिए सही समय पर अच्छे स्कूलों में एडमिशन का न होना, वृद्ध मां बाप का इलाज, बिना पेंशन व अन्य सुविधाओं के अभाव के चलते भविष्य का अंधकारमय होना, ऐसे बहुत से कारण हैं।

मानसिक रोगियों का उछाल चिंता का सबब

एसोसिएशन के महासचिव का कहना है कि पैरामिलिट्री सर्विसेज में मानसिक रोगियों का उछाल एक चिंता का सबब बन गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इन बलों में 2022 के दौरान कुल मानसिक रोगियों की संख्या 4940 थी। सीआरपीएफ में 1882 व बीएसएफ में 1327 के आसपास जवान, मनोरोग से पीड़ित हैं। अब सरकार बताए कि इन जवानों को किन परिस्थितियों ने मनोरोगी बनाया है। विभाग द्वारा कितने मनोचिकित्सक तैनात किए गए हैं। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान जवानों को छुट्टियां लेने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस साल लोकसभा चुनावों के चलते छुट्टियों पर बंदिशें लग जाएंगी। चुनाव आयोग कहता है कि हर पोलिंग बूथ पर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की उपस्थिति अनिवार्य है। इन बेमौसमी चुनावों के चलते लाजिमी है कि जवानों की छुट्टियों का कलेंडर गड़बड़ा जाता है। साल 2019 में जवानों से 100 दिनों की छुट्टी का वादा किया गया। आरटीआई के जरिए जब गृह मंत्रालय से इस बाबत जानकारी लेनी चाही, तो वह सूचना देने से मना कर दिया गया। सीआईएसएफ जवानों को मात्र 30 सालाना छुट्टी मिलती हैं, जबकि अन्य सभी सुरक्षा बलों व सेनाओं के तीनों अंगों में 60 दिन वार्षिक अवकाश दिया जाता है। कम छुट्टियों से परेशान होकर जवान, कोई भी गलत कदम उठा लेते हैं। सीआईएसएफ जवानों के बीच सर्वे कराया जाए कि कितने जवान 60 दिन का अवकाश चाहते हैं। पिछले 15 वर्षों में जवानों द्वारा की गई आत्महत्याओं, आपसी शूट आउट के मामलों, जवानों द्वारा नौकरी से त्यागपत्र एवं स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के कारणों एवं रोकथाम पर सरकार श्वेतपत्र जारी करें।

क्या इन वजहों के चलते नौकरी छोड़ रहे हैं बल कर्मी

बीएसएफ के पूर्व एडीजी संजीव कृष्ण सूद भी कह चुके हैं कि कई जगहों पर वर्कलोड ज्यादा है। जवान ठीक से सो नहीं पाते हैं। वे अपनी समस्या किसी के सामने रखते हैं, तो वहां ठीक तरह से सुनवाई नहीं हो पाती। ये बातें जवानों को तनाव की ओर ले जाती हैं। कुछ स्थानों पर बैरक एवं दूसरी सुविधाओं की कमी नजर आती है। कई दफा सीनियर की डांट फटकार भी जवान को नौकरी छोड़ने या आत्महत्या की तरफ ले जाती है। समय पर प्रमोशन या रैंक न मिलना भी जवानों को तनाव देता है। एसोसिएशन के चेयरमैन एवं पूर्व एडीजी ‘सीआरपीएफ’ एचआर सिंह और महासचिव रणबीर सिंह के मुताबिक, दिल्ली उच्च न्यायालय ने गत वर्ष 11 जनवरी को दिए अपने एक फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ को ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ माना है। इन बलों में लागू ‘एनपीएस’ को स्ट्राइक डाउन करने की बात कही गई है। अदालत ने अपने फैसले में कहा था, चाहे कोई आज इन बलों में भर्ती हुआ हो, पहले कभी भर्ती हुआ हो या आने वाले समय में भर्ती होगा, सभी जवान और अधिकारी, पुरानी पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। केंद्र ने इस फैसले को भी लागू नहीं किया। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय संसद में इस तरह के सवालों के जवाब में कहते रहे हैं कि इन बलों में आत्महत्याओं और भ्रातृहत्याओं को रोकने के लिए जोखिम के प्रासंगिक घटकों एवं प्रासंगिक जोखिम समूहों की पहचान करने तथा उपचारात्मक उपायों से संबंधित सुझाव देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है। कार्यबल की रिपोर्ट तैयार हो रही है। हालांकि गृह मंत्रालय की ओर से समय-समय पर आत्महत्या होने के मामलों के पीछे ‘निजी समस्या’ को ही जिम्मेदार ठहराया गया है।