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पैरसि ने मास्को के ख़िलाफ़ शत्रुतापूर्ण रवैया अपना रखा है, ब्रिक्स की बैठक में फ़्रांस का स्वागत करने पर तैयार नहीं रूस!

रूस के विदेश उपमंत्री सर्गेई रियाबकोव ने गुरुवार को बयान दिया कि मास्को यह सोच भी नहीं सकता कि फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां दक्षिणी अफ़्रीक़ा में आयोजित होने जा रही ब्रिक्स की शिखर बैठक में शामिल हों क्योंकि इस समय पैरसि ने मास्को के ख़िलाफ़ शत्रुतापूर्ण रवैया अपना रखा है।

उन्होंने कहा कि यक़ीनन यह ब्रिक्स के मेज़बान देश की ज़िम्मेदारी है कि इस बैठक के मेहमानों का निर्धारण करे और यह एक स्थापित परम्परा है। मौजूदा स्थिति में बेहतर होगा कि इस मसले पर सदस्य देशों से परामर्श किया जाए।

सर्गेई रियाबकोफ़ ने ज़ोर देकर कहा कि जो देश रूस के ख़िलाफ़ दुश्मनी बरत रहे हैं और अस्वीकार्य रवैया अपनाए हुए हैं वो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर रूस को अलग थलग करना चाहते हैं और वो नैटो का हिस्सा हैं और इससे भी बुरी बात यह है कि वो रूस को स्ट्रैटेजिक शिकस्त देने और बड़ी शक्तियों के क्लब से बाहर निकालने के लिए प्रयासरत हैं, उन्हें ब्रिक्स की बैठक में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

रूस का यह दो टूक बयान तब आया है जब फ़्रांस की विदेश मंत्री कैथ्रीन कोलोना ने दक्षिणी अफ़्रीक़ा की राजधानी प्रिटोरिया की यात्रा पर कहा कि इमैनुएल मैक्रां चाहते हैं कि ब्रिक्स की बैठक में मेहमान के रूप में शिरकत करें।

ब्रिक्स की बैठक में शरीक होने की फ़्रांस की कोशिश की कई वजहें हो सकती हैं। पहली बात तो यह है कि फ़्रांस सहित पश्चिमी देश बज़ाहिर ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन और यूरेशिया इकानामिक युनियन जैसे नवोदित संगठनों को ग़ैर अहम ज़ाहिर करते हैं मगर उन्हें विश्व स्तर पर इन सगठनों के महत्व और प्रभाव का बख़ूबी अंदाज़ा है। ब्रिक्स में ब्राज़ीज़, रूस, भारत, चीन और दक्षिणी अफ़्रीक़ा शामिल हैं जबकि बहुत से देशों ने इस संगठन में सदस्यता हासिल करने की मांग रखी है। विश्व आर्थिक मंच पर डालर के वर्चस्व को ख़त्म करके संगठन के सदस्य देशों की स्थानीय करंसियों को व्यापार में लाना ब्रिक्स का एक अहम लक्ष्य है। इससे पश्चिमी देशों में बड़ी बेचैनी है। इसलिए मैक्रां जैसे राजनेता जो हमेशा पश्चिमी नेताओं की लीक से अलग हटकर कुछ नया करने की कोशिश करते रहते हैं, ब्रिक्स जैसे संगठनों की मज़बूत गतिविधियों और प्रगति का दूर से तमाशा देखने के बजाए उनकी गतिविधियों में शामिल होने और पश्चिमी सोच को वहां भी स्थापित करने की कोशिश में हैं। उनकी कोशिश है कि इन संगठनों के फ़ैसलों पर किसी तरह प्रभाव डालें।

ब्रिक्स की बैठक में शरीक होने की मैक्रां की दिलचस्पी की एक और वजह यह हो सकती है कि वो इस संगठन के सदस्यों को जो इस समय दुनिया की उभरती हुई अर्थ व्यवस्थाओं के मालिक हैं रूस के ख़िलाफ़ अपनी नीतियों और गतिविधियों में अपने साथ मिलाएं। पैरिस की कोशिश है कि ब्रिक्स के सदस्यों के बीच रूस के मसले पर असहमति की स्थिति पैदा कर दे। फ़्रांसीसी राष्ट्रपति ने इस संदर्भ में सबसे मज़बूत मुद्दा यह खड़ा किया है कि रूस हमलावर है और उसकी सज़ा देना ज़रूरी है। जबकि पश्चिमी देश के नेता होने के नाते मैक्रां को बहुत अच्छी तरह मालूम है कि रूस ने किन हालात में विशेष सैन्य आप्रेशन शुरू किया। रूस ने कई बार चेतावनी दी थी कि नैटो यूक्रेन को सदस्यता देने की कोशिश न करे क्योंकि यह रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी रेड लाइनों में है। मगर पश्चिमी देशों ने नैटो का दायरा बढ़ाने और रूस को कंट्रोल करने की अपनी महत्वाकांक्षी योजना के तहत इस दिशा में आगे बढ़ना जारी रखा और अब तो उन्हें रूस और यूक्रेन की जंग का बहाना भी मिल गया है। पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को अपने हथियारों से पाट दिया है ताकि यह जंग इसी तरह जारी रहे।

रूस के राष्ट्रपति व्लादमीर पुतीन ने हाल ही में कहा कि यूक्रेन के पश्चिमी घटकों ने वाक़ई यह फ़ैसला कर लिया है कि यूक्रेन के आख़िरी सिपाही तक वो रूस से जंग जारी रखेंगे और उन्हें यूक्रेन के सैनिकों की जानें जाने का कोई ग़म नहीं है।

इस संदर्भ में यह विषय भी अहम है कि रूस पर लगाई गई अपनी पाबंदियों के तहत पश्चिमी देश यह कोशिश कर रहे हैं कि रूस के राष्ट्रपति और दूसरे वरिष्ठ अधिकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की बैठकों में शामिल न हों मगर अब मैक्रां कोशिश कर रहे हैं कि दूसरे देशों को नीचा समझने की अपनी पश्चिमी सोच के साथ दक्षिणी अफ़्रीक़ा में होने वाली बैठक में शामिल हों और संगठन के एक महत्वपूर्ण सदस्य यानी रूस को हाशिए पर डाल दें।