धर्म

#बिदअत_पार्ट -1 से 3 तक……By- भाई Shams Bond

Aamir Farooq
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#बिदअत_1
Bid’at की ज़ाहिर पहचान ये है कि ये खर्चीला होने के साथ शोर मचाने वाला होता है ।
जबकि सुन्नत वाली इबादत का हाल ये होता है कि आबिद अपनी इबादत का गवाह सिर्फ़ अल्लाह को बनाता है और जो मौजूद होते हैं ।
सुन्नत के लिए पाकीज़गी ए जिस्म व लिबास ज़रूरी है ।
बिदअत के लिए चंदा,झण्डा और बंदा को जमा करना होता है ।
सुन्नत एक आदमी ख़ुद से अदा करता है,या गवाहों की मौजूदगी में एक आलिम नेतृत्व करता है ।
बिदअत के लिए मोहल्ले के आलिम ,हाफ़िज़ या मुअज़्ज़िन व पीर को बुलाया जाता है ।
छोटे शब्दों में समझने के लिए ये काफ़ी है कि आते जाते लोगों को मालूम पड़ जाता है कि अमुक के घर कुछ मुसलमानी टाइप काम हो रहा है ।
मदरसा के बच्चे या टोपी लगाए लफंगे लड़के इधर उधर तेज़ तेज़ आवाज़ में एक दूसरे को निर्देशन दे रहे होते हैं ,बिठाने,खिलाने की भागदौड़ होती है बिदातों में ।
उर्स,अखाड़ा,मिलाद,क़ुरआन ख्वानी, शब ए बरायेत वगैरह पर नज़र जाती है तो धूम धड़ाकों जैसी फीलिंग होती है ।
कई तरह की खासियत वाले मौलवी जमा होते हैं , जिनमें से कोई मौलवी गुलूकार यानी गायक होता है वो ऐसे ऐसे शिर्किया नज़्म सुनाता है कि पूरा बज़्म वाह वाह करके पैसों की बारिश कर देता है,कोई मौलवी इतने जलाल में भाषण देते हैं कि उनकी कुर्सी के हत्थे की सेहत बिगड़ जाती है ,और कोई मौलाना बहुत बेहतरीन अफ़सानेबाज़ होते हैं , वो ऐसी तकरीर सुनाते हैं जैसे महाभारत में संजय युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाता था अंधे राजा को ।
वैसे भी बीदात की यही तारीफ है कि अंधे को विडियो दिखाया जाता है ,,दीनी जाहिल डॉक्टर ,दीनी जाहिल प्रोफेसर या दीनी जाहिल श्रद्धालु को भारी खर्चे की लिस्ट थमा कर ये यकीन दिलाया जाता है कि इतना खर्चने के बाद आयोजक की दुआ या मुराद अल्लाह रद्द नहीं करेगा ,ये अंधविश्वास है इसका निवारण ये है कि लोगों को मालूम हो कि जो काम रसूल मुहम्मद सल० अलैहि वसल्लम के तरीके या हुक्म के ख़िलाफ़ अमल में लाया जाता है वो इबादत रद्द कर दी जाती है ,अल्लाह उस इबादत को कचड़े में डालता है और बिदाती आबिद पर गुमराह होने का हुक्म साबित कर देता है ।
अल्लाह हमे कम इबादत नसीब करे लेकिन जितना नसीब हो , वो काबिल ए क़ुबूल हो और नफ़ा बख्श होने के साथ हमारी रूह को भी पाकीज़ा और दिमाग़ को सेहतमंदी देने वाली हो और बिल्कुल सुन्नत के मुताबिक हो ।
Shams Bond भाई

Shams Bond
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#बीदात_2
क़ुरआन की एक सूरत है जिसका मतलब होता है फिजूलखर्ची करने वाले इख्वान उश शैतान होते हैं ।
रात इबादत की है और खर्चे हो रहे हैं पटाखों पर, घर को सजाने पर,आस्था रखी जाती है कि मर चुके लोग अपने घरवालों से मिलने आते हैं,मुर्दों के स्वागत के लिए हलवा तलवा रखा रहता है।
मुर्दे घर आते हैं और ज़िंदे कब्रस्तान जाते हैं ।
जो ज़्यादा धार्मिक टाइप दिखना चाहते हैं वो अपने घर में हिन्दुओं कि दीपावली की तरह अपने घर में दिए अगरबत्ती जलाते है,,उनको बताया जाए कि फ़रिश्ते उल्लू या चील की सवारी नहीं करते और ना ही फ़रिश्ते अंधे या सजावट के प्रति आकर्षित होते हैं ।
बल्कि फ़रिश्ते रजिस्टर में लिखते हैं कि बंदा अंधविश्वासी बॉराहा और दूसरों से मुशाबिहत करने के वास्ते फिजूलखर्ची करने वाला है ।
इसे कहते हैं रोज़ा बख्श्वाने गए गले पड़ी नमाज़ ।
शब बरायेत की रात पर ओलमा में इख्तिलाफ है इसलिए बस ये कहूंगा की अपनी खुद की तहकीक अक्लमंदी के साथ करो ,उसके बाद शब्रात की इबादत करो ना करो ,आपकी रिसर्च पर रहो,,लेकिन हिन्दुओं की तरह घर को दीवाली जैसा तो ना बनाओ,उस खर्चे को बचा कर गरीब के घर राशन दवा या बच्चों के कपड़े मुहैया कर दो तो यकीन मानो,तुमने सारी रात इबादत ना भी की होगी तो गरीबों की मदद करके उनको खुश करने के बदले अल्लाह की बेशुमार रहमतों की बारिश होगी ,गरीब के रोम रोम से दुआ निकलेगी ,,ये दुआ होगी कुछ पैसों के खर्च पर ,,लेकिन इन दुआओं की सुरक्षा दुनिया से लेे कर पुल सिरात तक रहेगी ।
मुसलमानों को मालूम होना ही चाहिए कि सबसे दुश्वार और खतरनाक रास्ता पुल सिरत का ही है जिस पर हर एक मुसलमान को चलना ही पड़ेगा ,,और वहां सिवाय नूर या अंधेरे के दूसरा कुछ नहीं होगा ,,इल्म व अमल के उजाले होंगे या जहालत और मुनाफिकत के अंधेरे होंगे ।
डर की जो सीमा है उसका अंत है ये पुल या फिर हादसे, यातना,तकलीफ और कभी ना मरने देने वाली भयानक आग है जिससे रिहाई मुश्किल होती है,,अल्लाह से पनाह मांगता हूं अपने लिए,घरवालों के लिए,पड़ोसियों के लिए और उनके लिए भी जो कयामत पर यकीन रखते हुए नेक काम करते हैं ।

Shams Bond
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#बिदअत 3
माह शाबान का चांद दिख गया है यानी दुनिया के मुसलमानों के सर्वश्रेष्ठ दिनों वाला महीना ( अच्छे दिन) की शुरुआत की घोषणा है ,,अब सिर्फ़ नसीब वाला ही होगा जिसको ये पूरा महीना मिल जाए और वो इबादत में नेकिओं में,जकात खैरात सदका में बढ़ के हिस्सेदारी लेे ।
वो भी अच्छे नसीब वाले हैं जो रमज़ान के दिन रात के किसी पहर दुनिया को अलविदा कहेंगे ।
ख़ैर बात शाबान की है तो इसकी सुन्नत है कि आखरी रसूल सल० अलैहि वसल्लम शाबान की पंद्रहवीं रात यानी शब बरायेत से पहले कसरत ( ज़्यादा) रोज़ा रखते थे आम दिनों की तुलना में ,,और पंद्रहवी शब के बाद खूब खाने पीने का हुक्म दिए है रमज़ान की पहली सहरी से पहले ।
लेकिन हम लोगों ने शॉर्ट बेनिफिट के लिए मौलवियों के समझाने पर रात की इबादत के लिए शब्रात और दूसरे दिन रोज़ा रखने की परंपरा बना ली है ,,ये सुन्नत की सेहत में सही नहीं है ।
अगर नबी 15विं शाबान को बक़ी कब्रस्तान गए थे तो अकेले गए थे अपनी किसी बीवी बच्चा या भतीजा भाई या पड़ोसी को भी जग कर कब्रस्तान में जमा होने का आदेश नहीं दिया,,लेकिन कब्रों की ज़्यारत ( दैनिक दर्शन) का हुक्म दिया है ताकि लोग अपनी यकीनी मौत का इंतज़ार करने के साथ साथ ,मौत की तैयारी भी करी जाए ।
अगर दिए पॉइंट्स पर बात करनी हो तो स्वागत है आपका

Shams Bond
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बिदअत की पोस्ट पर हलवाखोर बमक्ते हैं,कव्वाखोर मज़े लेते हैं और हरामखोर को शर्म तक नहीं आती,,,जबकि गुमराही में उस मुजरिम का जुर्म बड़ा होता है जो कानून की जानकारी के बावजूद कानून की फ़िक्र नहीं करता ।
बिदआति कव्वाली,गान बजान के ज़रिए दिल बहला लेता है,दूसरे बिदआति जमातों में लोटा चटाई लेे कर भटकने में ही भलाई समझते हैं ।
लेकिन इनको क्या हुआ है ,ना बीदात में पड़ते हैं,ना कव्वाली सुनते हैं,ना जमात की चिल्ला बत्तीसी में जाते हैं ना मिलाद करते हैं और ना ही न्याज़ फातिहा करते हैं ।
हदीसों के बंडल लिए रहते हैं इसके बावजूद जुमा को तब मस्जिद में दाखिल होते हैं जब अज़ान हो चूकती है ,इमाम खुतबा जुमा पढ़ के इस्लाही तकरीर शुरू कर चुके होते हैं।
एक बात खूब याद रखो कि जाहिल तो कम लपेटे जाएंगे वो अपना जुर्म ओलमा पर डालेंगे, कि आलिम तफर्का या दान दक्षिणा के मुद्दे के अलावा और कुछ बताए ही नहीं ।
जुमा सोमवार की फ़ज़ीलत बताए ही नहीं, माह रज्जब से नफ़ली रोज़ों की कसरत होनी चाहिए ताकि रमज़ान तक ,खैनी,गुटखा, बीड़ी,सिगरेट के शौकीन लोगों को आदत हो जाए सब्र और रज़ा ए इलाही की कोशिशों का ।
ऐसे लोग जो 15 शबान से पहले रोज़ों की प्रैक्टिस नहीं करते ,, ऐन रमज़ान के टाइम अपनी हालत दुनिया को बता कर अपने रोज़े भी बातिल करते हैं ,और दूसरे रोज़े दार को भी हतोत्साहित करते हैं।
मै कह देता हूं कि मुशरिक अपनी चाल में फंसेगा, बिदआति अपनी गुमराही में घेरा जाएगा , गुमराह तो सीधा गड्ढे में जाएगा पक्का,,लेकिन यार ! तुम को होश क्यूं नहीं आता जो क़ुरआन हदीस और सुन्नत का दावा करते हो ,,लेकिन करम बिदतियों से भी गए गुज़रे हैं ।
मैंने निशानी बताई है ,,आप सब चेक कर लो ,कौन से ग्रुप में गिने जाने के लायक हो