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#राजनीति_एक_पहेली : लेखक मुकेश शर्मा

Lekhak Mukesh Sharma
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#राजनीति_एक_पहेली Lekhak Mukesh Sharma
राजनीति जितनी आसान दिखती है उतनी है नहीं।आम लोग राजनीति को नेता के आचार-विचार से देखते हैं जो कि सामान्य नजरिया है जिसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं।आम आदमी का अमूमन नेता से कोई निजी या सार्वजनिक काम नहीं होता।वह तो कभी-कभार मुलाकात होने पर हुई दुआ-सलाम से उसके राजनीतिक जीवन की आयु की गणना कर लेता है।हैरत की बात तो ये है कि नेता इस मुलाकात में भी सफल नहीं हो पाता।क्या हुआ कभी आम आदमी का काम पड़ गया तो कितना राशनकार्ड, कहीं बच्चे के लिए हस्ताक्षर या बहुत हुआ तो बीमारी से बेबस सरकारी अस्पताल की सिफारिश जिसे मानवता व दायित्व की श्रेणी में रखना चाहिए परन्तु अमूमन अधिकतर नेता इस योग्यता को भी नहीं रख पाते।

राजनीति मूलतः भ्रष्टाचार का पर्याय है जिसे भारतीय राजनीति में स्वर्ण व चाँदी के वर्क चढ़े शब्दों से आकर्षक बनाने का असफल प्रयास किया गया है।इसलिए भी राजनीति का वह चेहरा ढका रहता है जिसे ढकने में आम आदमी का चेहरा लज्जा से पीला पड़ जायेगा।वास्तव में लम्बी दूरी की छलांग लगाने वाला नेता कभी भी अपने मूल आचरण का प्रभाव नागरिकों पर नहीं पड़ने देता और सब्जी में नमक की तरह माल हजम करते हुए आगे बढ़ता रहता है।ऐसा नेताओं को खानदानी नेता की श्रेणी में स्थान प्राप्त होता है।जनता भी ऐसे नेता का दिल से समर्थन करती है।भले ही कोई पक्ष या समुदाय उसका समर्थन न करे लेकिन खुलकर आलोचना नहीं करता।

दूसरी श्रेणी के नेता आजादी के दीवानों की तरह असरानी की शोले फिल्म में गब्बर जैसी एंट्री मारते हैं और उन दीवारों पर उनके पुनः आने के अभिलेख प्रकाशित होकर शिलालेख बनने की प्रतीक्षा करते हैं।ये लोग कभी जनता से नहीं जुड़ पाते और अपने स्वभाव के अनुसार नमक में सब्जी मिलाकर डकारते रहते हैं।इनके भण्डारे में असरानी के गुर्गों से लेकर दाँये-बाँये के दोनों संतरियों की फौज राजा और सिपाही की एंट्री करवाती दिखती है।ऐसे में प्रजा से विमुख नेता की हस्ती क्या होती है हम सब जानते हैं पर नेता को बताते नहीं?ऐसा नेता अपने पहले ही पड़ाव पर अपनी राजनीतिक यात्रा का अंत कर लेता है।

कहते हैं कि जिसे घर में सम्मान नहीं मिलता उसे बाहर कौन घास डालेगा?जनता का ठुकराया नेता किसी दल की पसंद नहीं होता।वह तो बूढ़े शेर की तरह न शिकार करने में सक्षम रहता है न उसे कोई साथ रखने को तैयार होता है।इस राजनीतिक जीवन के लिए सबसे अच्छा यही है कि उस स्थान का त्यागकर नये शिरे से अपने जीवन की आधारशिला रखे जहाँ उद्योग हो पर राजनीति नहीं।जहाँ प्रेम हो पर द्वेष नहीं।यदि ऐसा न हुआ तो कहीं न कहीं उसका राजनीतिक चक्र पीछा नहीं छोड़ेगा और वह मानसिक रूप से टूटता चला जाता है।
मुकेश शर्मा
22 दिसंबर 2022