साहित्य

वह चनावाला…..By-जयचंद प्रजापति

जयचंद प्रजापति
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वह चनावाला
वह चनावाला। रोज आता है। हमको चना खिलाने। मजा आ जाता है। भीगा चना, नमक, प्याज, पुदीना, धनिया, मिर्चा, नीबू सब मिलाकर देता था। एकदम पौष्टिक। सुबह ही मेरे घर पर देने चला आता है। उस बुजुर्ग के हालात को देखकर रोज मैं चना उसका लेता हूं। पहली बोहनी हमारे से होती थी उसकी।
एकदम बुजुर्ग। ठेले पर बेंचता है, ठेला ठेलना भी भारी पड़ता था। कई बार मैंने कहा कि आपकी अवस्था ज्यादा हो गयी है।अब आपको घर पर रहने की जरूरत है लेकिन दादा जी ने बताया कि उसका इकलौता बेटा रोज भेजता है। चने बेचने के लिये और शाम को आकर सारा पैसा ले लेता है।
दारू पीता है। कोई काम नहीं करता है। आवारा है। आवारा लड़को के साथ घूमता है। घर में बहू है। घर का खर्चा कैसे चलेगा। इस कारण चला आता हूं। बीमार रहता हूं तो भी बेटा चना बेंचने भेजता है। मजबूर करता है कि अगर नहीं बेचोगे तो खाना नहीं मिलेगा।
बहुत ही संजीदा हालात लेकिन आवारा लड़के के कारण एक बुजुर्ग व्यक्ति को कमाकर शाम तक बेटे के लिये दारू का इंतजाम करना पड़ता है। कई दिन से वह चनावाला नहीं आ रहा है।
मैं बहुत दुखी हूं। उसके साथ कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई। कुछ दिन पहले बीमार होने की जिक्र की थी। अगर उसके साथ कुछ हो जाता है तो बेटे को दारू की व्यवस्था कैसे होगी। अब वह दारू कहां से लायेगा। कौन इंतजाम करेगा। बाप क्या चीज होता है अब उस नालायक को अहमियत पता चलेगा।
….जयचन्द प्रजापति ‘जय’
प्रयागराज