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सुप्रीम कोर्ट ने असम के डिटेंशन सेंटरों में दो साल से ज़्यादा अरसे से रहने वाले लोगों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी, डिटेंशन सेंटर में रह रहे लोगों का हाल जानिये!

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने असम के डिटेंशन सेंटरों में दो साल से ज्यादा अरसे से रहने वाले लोगों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी है. कोर्ट ने सेंटर में रह रहे लोगों के हालात की जानकारी के लिए एक टीम भेजने को भी कहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार को ऐसे मामलों में कुछ कार्रवाई करनी होगी जिनमें संबंधित व्यक्ति दो साल से ज्यादा समय से इन सेंटरों में रह रहा है. इस मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने ऐसे विदेशियों को मिलने वाली सुविधाओं का पता लगाने के लिए मौके पर एक टीम भेजने का भी निर्देश दिया है. इस मामले की अगली सुनवाई 16 मई को होगी. असम में वर्ष 2008-09 में राज्य की तत्कालीन तरुण गोगोई सरकार के शासन में पहला डिटेंशन सेंटर खोला गया था.

ढाई साल से डिटेंशन सेंटर में
असम के गोलाघाट जिले की रहने वाली तबस्सुम की बताती हैं, “मेरे पति के पास तमाम दस्तावेज होने के बावजूद उनको एक विदेशी न्यायाधिकरण ने विदेशी घोषित कर दिया था. उनका नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) में नहीं था. परिवार के बाकी सदस्यों के नाम इसमें शामिल थे. उसके बाद उनको एक डिटेंशन सेंटर में भेज दिया गया जहां वो करीब ढाई साल से रह रहे हैं. हमने तमाम जगह गुहार लगाई लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई.”

यह कहानी सिर्फ तबस्सुम की नहीं है. एनआरसी की कवायद के बाद ऐसे हजारों लोगों को ‘विदेशी’ घोषित कर राज्य के छह स्थानों पर बने डिटेंशन सेंटरों में भेज दिया गया था. वर्ष 2020 में वहां ऐसे एक हजार से ज्यादा लोग रह रहे थे. उनमें से कइयों को वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद गुवाहाटी हाईकोर्ट से जमानत मिल चुकी है.

असम में अगस्त 2019 में एनआरसी प्रकाशित होने के बाद उसमें से करीब 19 लाख लोगों के नाम बाहर रह गए थे. ऐसे लोगों का भविष्य अनिश्चित हो गया था. उनमें से कइयों को गिरफ्तार कर विभिन्न डिटेंशन सेंटरों में भेज दिया गया. हालांकि असम सरकार ने अब इनका नाम बदल कर ट्रांजिट कैंप कर दिया है. विदेशी न्यायाधिकरणों ने दिसंबर 2021 तक 1.43 लाख लोगों को विदेशी घोषित कर दिया था. राज्य भर में फैले ऐसे 100 से ज्यादा न्यायाधिकरणों के सामने फिलहाल 1.23 लाख लोगों के मामले लंबित हैं.

सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर
असम सरकार ने विदेशी घुसपैठियों के लिए राज्य के ग्वालपाड़ा जिले के मातिया में देश का सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर बनाया है जिसे मातिया ट्रांजिट कैंप के नाम से जाना जाता है. बीते साल वहां 68 विदेशियों के पहले जत्थे को दूसरे डिटेंशन सेंटरों से शिफ्ट किया गया था.

असम की छह जेलों में बने डिटेंशन सेंटर शुरू से ही विवादों के केंद्र में रहे हैं. खासकर नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) लागू होने के बाद ऐसे सेंटर लगातार सुर्खियों में रहे हैं. इन सेंटरों में कैदियों की अमानवीय हालात और उनकी मौतों की खबरें भी अक्सर सुर्खियां बटोरती रही हैं.

ऐसे एक डिटेंशन सेंटर में रहने वाले अब्दुल कलाम सवाल करते हैं, मैं तो बांग्लादेशी नहीं हूं. मैंने वर्ष 1985 में मतदान किया था. लेकिन एक विदेशी न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया था कि कलाम नागरिकता के लिए तय कटऑफ तारीख 24 मार्च 1971 के बाद भारत आए थे. इसलिए उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया. दिलचस्प यह है कि उनकी पत्नी आयशा खातून और परिवार के बाकी लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 में अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि विदेशी घोषित जो लोग दो साल से ज्यादा समय से डिटेंशन सेंटर में रह रहे हैं उनको जमानत पर रिहा किया जा सकता है. उसके बाद सैकड़ों लोगों को जमानत मिली थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल दो सौ लोग इन डिटेंशन सेंटर या ट्रांजिट कैंप में रह रहे हैं.

डिटेंशन सेंटर से जुड़ा ताजा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने इस सप्ताह एक याचिका पर सुनवाई करते हुए असम राज्य कानून सेवा प्राधिकरण से ऐसे लोगों की तादाद बताने को कहा है जो दो साल से ज्यादा समय से ऐसे सेंटर में रह रहे हैं. एक एडवोकेट की ओर से दायर याचिका में ऐसे लोगों की जमानत पर रिहाई का निर्देश देने की अपील की गई है. अदालत की एक खंडपीठ ने प्राधिकरण को एक टीम गठित करने का भी निर्देश दिया है जो ऐसे तमाम डिटेंशन सेंटर का दौरा कर वहां रहने वालों को मिल रही सुविधाओं पर भी 15 मई तक रिपोर्ट सौंपेगी.

असम में विदेशी घोषित होने वाले नागरिकों और उनको डिटेंशन सेंटर में रखने के सवाल पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं. अदालत के निर्देश के बाद कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक रहता है, लेकिन बाद में स्थिति फिर वैसी ही बन जाती है. अपने पति की रिहाई की तबस्सुम की उम्मीदें भी अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं.

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प्रभाकर मणि तिवारी