साहित्य

….आख़िर तुम्हारा भाई मरा कैसे”

जल्दी करो, जल्दी करो, देर हो रही है… कितनी देर लगाती हो एक टिफ़िन देने में”…..प्रफुल्ल बाबू ने झल्लाते हुए अपनी पत्नी मीतू से कहा ।

“आ गई, आ गई….अब आसमान सिर पर मत उठाईये… लीजिए अपना टिफ़िन , ख़ुद सुबह उठने में देर करते हैं औऱ सारा दोष मेरे मत्थे मड़ देते हैं…. इसे कहते हैं कोहड़ा पर हसुआ चोख “…..मीतू ने मुस्कुराते हुए एक बाउंसर मारा ।

अब प्रफुल्ल बाबू ने आनन फानन में घर्र से अपनी कार स्टार्ट की औऱ सोसायटी के मेन गेट की ओर निकलने लगे ।

लेकिन तभी अचानक उन्हें पीछे से किसी ने आवाज़ लगाई …..”साहब जी , आगे गली की सड़क रात भर हुई भारी बारिश के कारण धंस गई है… गाड़िया नहीं पार हो पा रही हैं , बस किसी तरह लोग पैदल मुख्य सड़क तक जा पा रहे हैं “।

ये जानकर प्रफ्फुल बाबू का दिमाग़ तेज गरम हो गया और थोड़ी चिंतित भी, क्योंकि उन्हें पहले ही ऑफिस के लिए देर हो रही थी ।

लेकिन वे मज़बूर थे,भला कर भी क्या सकते थे।

झटपट उन्होंने अपनी गाड़ी रिवर्स कर गैरेज में लगाई औऱ तुरंत पैदल ही निकल गए कि आज तो अब मेट्रो का ही सहारा है ।

सड़क जहाँ धसी हुई थी वहां से बचते बचाते किसी तरह पैदल ही आगे निकलकर प्रफ्फुल बाबू ने हड़बड़ी में एक रिक्शेवाले को आवाज़ लगाई….”ओय भाई , कालीघाट मेट्रो स्टेशन चलोगे क्या “….??
“क्यों नहीं साहब, जरूर, लेकिन पूरे पचास लूंगा”…रिक्शेवाले ने उत्तर दिया ।

“साले तुमलोग भी मज़बूरी का फ़ायदा उठाते हो…भाड़ा चालीस रुपए है लेकिन आज पचास टान रहे हो….लूट लो जबतक आपदा में अवसर है”….प्रफ्फुल बाबू ने गुस्से में अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की ।
फिर कुछ बुदबुदाते हुए प्रफ्फुल बाबू बेमन से ही लाचारी में रिक्शे पर बैठ गए औऱ उसे चलने का इशारा किया ।

रिक्शेवाले ने आदेश पाकर अपने पैरों से पैंडल को दबाया औऱ फ़िर रिक्शे की चेतनाशून्य पहियों ने गति पकड़ ली ।

“थोड़ा मेट्रो स्टेशन तक जल्दी चलना भाई ,पहले ही बहुत देर हो चुकी है ….लेकिन ये बताओ कि आज थोड़ी सड़क क्या क्षतिग्रस्त हो गई, तुमलोग भी लगे लूटने….हद है यार मौकापरस्ती की…हट”…..प्रफ्फुल बाबू ने कहा ।

“ऐसा नहीं है साहब , मैं थोड़ा मज़बूर हूँ औऱ साथ ही साथ हालात का मारा भी”….रिक्शेवाले ने सफाई देनी चाही ।

“ऐसी भी क्या मज़बूरी कि दिनदहाड़े डाका डालने लगे”…..प्रफ्फुल बाबू ने जानना चाहा।

साहब,दरअसल पाँच दिन पहले एक हादसे में मेरे छोटे भाई की बेहद दर्दनाक मृत्यु हो गई थी, उसी के श्राद्धकर्म के लिए दो हजार रुपए की तत्काल जरूरत आन पड़ी ,इसलिए सोचा आप जैसे सवारियों से ही कुछ निकाल लूंगा औऱ अगर फ़िर भी जुगाड़ न हो पाया तो अंत में इस रिक्शे को ही बेच डालूंगा “।

“अब लगे फ़िल्मी कहानी गढ़ने….तुम जैसे दो नंबरी लोगों के रग रग से वाकिफ़ हूँ मैं”…प्रफ्फुल बाबू ने अपनी आँखों को नचाते हुए कहा।

“ऊपरवाले की सौगंध साहब, मैं क़भी झूठ नहीं बोलता, मुझें अपने छोटे भाई से इतना प्रेम था कि उसके कारण ही आजतक मैंने शादी नहीं की कि कहीं बीबी बच्चों के चक्कर में मेरा प्यार बंट न जाए “…..रिक्शेवाले ने धीमी स्वर में कहा।

“मेरी माँ ने मरते समय उसका हाथ मेरे हाथ में पकड़ाकर कहा था कि बेटा छोटू का ख़याल रखना “…ये कहते हुए रिक्शेवाला सिसकने लगा।

“ओह, तो ज़रा ये भी बताना कि आख़िर तुम्हारा भाई मरा कैसे”…..प्रफ्फुल बाबू के होंठ फ़िर हिले ।

“दरअसल पाँच दिन पहले एक बड़े रईसजादे ने दारू के नशे में रात को अपनी गाड़ी फुटपाथ पर सो रहे कुछ लोगों पर चढ़ा दी थी, जिसमें तीन लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी, उनमें अन्य दो बदनसीबों के साथ मेरा भाई भी था,यहाँ सिर्फ़ कब्रों पर ताजमहल है साहब औऱ एक टूटी छत को ज़िंदगी तरसती है हम जैसों की”……रिक्शेवाले ने कहा ।

“ये सुन प्रफ्फुल बाबू का माथा ठनका औऱ वे मन ही मन सोंचने लगे…अरे हाँ ये ख़बर तो मैंने अखबारों में पढ़ी थी….ओह , हे प्रभु…….” ।

उसके बाद प्रफ्फुल बाबू कुछ पल के लिए गहरे चिंतन के सागर में गोताखोरी करने लगे, मानो अचानक उनके मुंह से शब्द ग़ायब हो गए औऱ बेहद गहरी खामोशी उनके इर्द गिर्द मंडराने लगी । ।
“चलिए साहब, आ गया कालीघाट मेट्रो स्टेशन”….ट्रिंग ट्रिंग घंटी बजाते हुए रिक्शेवाले ने अपनी रिक्शा की रफ़्तार को शून्य कर दिया औऱ पहिए पुनः सरकारी दफ़्तर के बाबू की तरह आराम की मुद्रा में आ गए ।

अचानक प्रफ्फुल बाबू का ध्यान टूटा औऱ वे रिक्शे से झट उतरकर अपना बटुआ जोहने लगे ।

फ़िर बटुए से कुछ रुपए निकालकर रिक्शेवाले को थमाते हुए जल्दबाजी में बोले…..”ये पकड़ो…….लेकिन..लेकिन अपनी रिक्शे को हरगिज़ मत बेचना “…..।
दोनों ने एक दूसरे की आँखों में दो तीन सेकेंड तक देखा ।

फ़िर दनदनाते हुए प्रफ्फुल बाबू मेट्रो की सीढ़ियों से सुकून की एक लंबी सांस लेते हुए नीचे उतरने लगे औऱ रिक्शेवाले की नज़रों से ओझल हो गए ।
रिक्शेवाले ने जब अपनी मुट्ठी खोली तो उसमें पाँच पाँच सौ के चार नोट थे……।

अब उसे बस ये अफ़सोस हो रहा था कि वो उस भले मानुस को शुक्रिया भी न कह सका….वो तो बस रोए जा रहा था…..बार बार, लगातार…….!!