ब्लॉग

इसके लिए आपको धैर्यवान बनना पड़ेगा : जर्नलिस्ट विवेक का लेख पढ़िये!

Journalist Vivek
=============
कहीं आप भी तो यह गलती तो नहीं कर रहे….🙏
एक कहावत है कि, दुनिया से सीखते रहो दुनिया को सिखाते रहो। यह अच्छा है या यूं कहें कि यहां तक सब अच्छा था। लेकिन दूसरों की उलाहना, आलोचना और क्रोध में बोले गए कुछ शब्दों से सीखना आपको कमजोर, बहुत कमजोर बना देगा।

यदि आप रोज अलग-अलग तासीर के लोगों से मिल रहे हैं, तो यह गौर करने वाली बात सिर्फ और सिर्फ आपके लिए। क्योंकि जिस वार्तालाप को आप सामान्य गुफ्तगू समझने की भूल कर रहे हैं। दरअसल वह पूरी तरह से आपका जीवन बदलने वाला है।

क्योंकि जनाब आप जिस दायरे में रहते हैं। क्योंकि जिनके सवालों का जवाब देते हैं। जिनके साथ लड़ते हैं, हंसते हैं, रोते हैं। अर्थात जीवन का हिस्सा जिनके साथ आप जी रहे हैं‌। दरअसल आपका आने वाला कल इन्हीं बातों के आधार पर तय होने वाला है और आप देखेंगे कि आपमें बेइंतहा बदलाव आ गया है। आप यह भी कह सकते हैं कि, बदलाव तो अच्छी बला है। हो सकती है, बिल्कुल हो सकती है। लेकिन हर दफा नहीं, अब इसे उदाहरण की मदद से समझने की कोशिश करते हैं।

दुनिया को जिस नजर से देखेंगे दुनिया वैसी ही दिखेगी अपने आप को बेहतर बनाने के लिए काम कीजिए।

यह जानने की कोशिश कीजिए कि आप की मजबूती क्या है आपकी कमजोरी क्या है।

हमें दोनों समझने की आवश्यकता है। लेकिन अपने आप से पूछने की जरूरत है कि, क्या वाकई हम ऐसा कर पा रहे हैं। चाहे कार्यक्षेत्र हो या कोई और जगह पल प्रतिपल कोई दूसरी बोली हमसे सवाल करती हुई कई दफा हमें चुनौती भी देती है और हम उस बात का जवाब देने में पूरा तर्क ज्ञान लगा देते हैं। दरअसल मानव मस्तिष्क के काम करने का तरीका है कि, जिस बात को आप जितना तरजीह देंगे। वो उतना ही विशेष दिखेगी और आप भी पूरी गंभीरता तन्मयता के साथ उसके बारे में सोचना समझना शुरू कर देते हैं।

दरअसल यहां मैं यह नहीं कह रहा कि, आप दूसरों के सवालों पर बिल्कुल मौन हो जाएं या बिल्कुल निष्ठुर। बल्कि जो सवाल आप से पूछा जाए उसमें पहले तो यह देख लें कि, उसका क्या सीधा-सीधा जवाब दिया जा सकता है अथवा नहीं। क्योंकि जनाब देश दुनिया बोली क्यों ना बदल जाए, असल में सीधा जवाब सुनने के लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है और प्रायः यह सबमें नहीं पाया जाता। यानी कि एक पुरानी कहावत तो सिद्ध हुई कि, सुनाने वाला नहीं बल्कि सुनने वाला बड़ा होता है।

अब आपने यदि इन दो लाइनों को समझ लिया है तो पूरा लेख आपके पल्ले पड़ जाएगा। लेकिन ध्यान रहे यहां मौन के साथ दिमाग पूरी तरह से सचेत रहना चाहिए। वैसे इंसानी दिमाग की फितरत है कि, वह मौन के समय सचेत रहता ही है। अब यदि इन सब के बावजूद भी आप अपने आपको लोगों के सवालों का सटीक और संतोषजनक जवाब देने में पीछे पा रहे हैं, तो यह निश्चित ही समझ के दायरे का उतार-चढ़ाव हो सकता है। और हां ये जरूरी नहीं कि, हमारी सारी बातें दुनिया को बताई जाए। बल्कि कुछ बातों का जवाब नहीं दे पा रहे हैं तो वहां मुस्कान वाली मौन मुद्रा को प्रदर्शित कर दें। ऐसा करना आपको दूसरे के मन में गंभीरता देगा और मान लीजिए यदि इससे भी बात ना बने तो बिल्कुल भी व्याकुल मत होइए। बल्कि समय नामक अदृश्य शक्ति पर भरोसा कीजिए। उसमें इतनी ताकत है कि, वह हर बात का जवाब दे देता है। उसमें थोड़ा समय लग सकता है। यानी इसके लिए आपको धैर्यवान बनना पड़ेगा।

इस लेख को लिखने का मकसद यही था कि, जाने अनजाने में हम अपने आस पास से जुड़े हुए लोगों के साथ रहकर उनकी बातों का जवाब देकर आखिर खुद को क्या बना रहे हैं। यहां यह जानना भी बहुत बहुत जरूरी है क्योंकि आपकी सोच, बोली, तार्किक क्षमता, मापदंड उतना ही होगा जैसा आपके आसपास का आवरण। और यदि इन सब के बावजूद आपको कोई नहीं बदल पाया तो फिर दुनिया से पहले आप ही अपने नाम के आगे महान लिखें। हालांकि दुनिया के तमाम दर्शनार्थियों, विचारकों का एक मत है कि, आपकी सोच आपकी बोली आप का पैमाना वैसा ही होता है। जैसा आपके आसपास का आवरण। इस पर अवश्य गौर कीजिएगा, क्योंकि यह वाकई जीवन बदलने वाला है। अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। 🙏
#विचार