साहित्य

जीत गए तो वसुधा का सुख भोगोगे,,,हार गए तो फिर संघर्ष दुबारा है…..By -समीक्षा सिंह


Samiksha Singh
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जय श्री राम मित्रो,
मैं नित्य जागती हूँ इस उद्देश्य के साथ कि आज दिन में कम से कम एक हिन्दू को जाग्रत करूँगी, मैं सोती हूँ इस आशा में कि जब जागूँगी मेरे पास कुछ नया होगा इस राष्ट्र को देने के लिए …..
इसी उपाहपोह में कई मित्रों की टिप्पणी अनुत्तरित रह जाती हैं कई मित्रों के सन्देश बिना जवाब दिए रह जाते हैं, किन्तु मुझे विश्वास है कि मेरे सभी राष्ट्रवादी मित्र ये जानते हैं कि हमें बिना एक भी क्षण व्यर्थ किए अपना पूरा समय राष्ट्रजागरण में देना है तभी अपना धर्म बच पाएगा और जब धर्म बच पाएगा तभी देश बच पाएगा |
मैंने सदा ये निसंकोच स्वीकार किया है कि मेरा जो कुछ भी है सब फेसबुक के मित्रों की ही देन है और मेरे सभी राष्ट्रवादी मित्र समझते हैं कि मैं चाहे किसी की टिप्पणी का उत्तर दूं या न दूं मेरा स्नेह सदा उनके साथ है |
राजकीय सेवा में होने के कारण कई बार परिस्थतियाँ ऐसी भी होती हैं कि मैं जितना स्पष्ट कहना चाहती हूँ उतना नहीं बोल पाती लेकिन फिर मैं अपना प्रयास कभी कम नहीं करती कभी हताश नहीं होती |
यही मैं आप सबसे भी चाहती हूँ कि अपना प्रयास कम मत कीजिए, कभी हताश मत होइए क्यों कि हम उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से हैं जिनको अपना और अपनी संततियों का भविष्य तय करने का अवसर मिला है |
किसी ने कहा था कि एक जागरुक स्त्री हजारों जागरुक पुरुषों से अधिक प्रभावी होती है तो आप सब विश्वास रखिए मैं अपनी मृत्यु से पहले अपने जैसी हजारों समीक्षाएं इस राष्ट्र को धर्म जागरण के लिए दे जाऊंगी
जागरुक रहिये, एक साथ रहिये ….और ध्यान रखिये किसी का भी सम्मान केवल ये देखकर कीजिए कि उसने धर्म के लिए क्या किया है, राष्ट्र के लिए क्या किया है, और केवल इतना याद रखिए …

जीत गए तो वसुधा का सुख भोगोगे
हार गए तो फिर संघर्ष दुबारा है
विजित हुए तो पूज्य रहोगे इस जग में
और पराजित को जग ने धिक्कारा है
जब तक अंतिम श्वांस, शेष शोणित तन में
कभी पराजय का चिंतन ना हो मन में…………………
गर्व करो ये धरा मिली है भारत की
गर्व करो तुमने मानव तन पाया है
गर्व करो तुम जन्में सत्य सनातन में
इसीलिए पुरुषार्थ स्वयं ही आया है
धर्म धरा के हित में अर्पित हो जाना
वीरों का बस धर्म समर्पित हो जाना
जब तक पूर्ण न लक्ष्य लड़ो निर्भय रण में
कभी पराजय का चिंतन ना हो मन में…………………
धन्य तुम्हें वरदान मिला है वीरों से
देवों ने तुमको संग्राम सिखाया है
धन्य तुम्हें अभिमान मिला है धीरों से
तुमसे लड़कर काल स्वयं पछताया है
कायरता तो केवल पथ की बाधा है
अर्जुन ने बस लक्ष्य आँख का साधा है
त्यागो सारे मोह छुपे जो चेतन में
कभी पराजय का चिंतन ना हो मन में…………………
आप सब को पुन: पुन: आभार अभिनन्दन , सदा अपना आशीर्वाद और स्नेह बनाए रखिये |
समीक्षा सिंह | भारत