धर्म

पवित्र क़ुरआन पार्ट-45 : नमाज़, इंसान को गुनाहों से पाक करने और ईश्वर की ओर से क्षमा दिलाने का साधन है?!

सूरे अन्कबूत के एक भाग में झूठे व गढ़े हुए ख़ुदाओं की कमज़ोरी, पवित्र क़ुरआन की महानता, पैग़म्बरे इस्लाम की सत्यता और नमाज़ सहित दूसरे सदकर्मों का उल्लेख किया गया है।

ईश्वर अनेकेश्वरवादियों व अत्याचारियों के बुरे अंजाम का उल्लेख करने के बाद, सूरे अन्कबूत की आयत नंबर 41 में उन लोगों के बारे में बहुत अच्छी मिसाल पेश करता है जो उसे छोड़ कर दूसरों को पूजते और उस पर भरोसा करते हैं। ईश्वर कह रहा है, “जो लोग ईश्वर को छोड़ कर दूसरों को अपना अभिभावक चुनते हैं, उनकी मिसाल मकड़ी की है जिसने अपने लिए घर बनाया है। जबकि अगर समझें तो सबसे कमज़ोर घर मकड़ी का होता है।”

हर जानवर और कीड़े-मकोड़े अपने लिए घर बनाते हैं लेकिन किसी का घर मकड़ी के घर जितना कमज़ोर नहीं होता। हर घर में दीवार, छत और दरवाज़ा होना चाहिए ताकि घर के मालिक को बुरी घटनाओं से बचाए लेकिन मकड़ी का घर कुछ तार पर आधारित होता है जो बहुत ही नाज़ुक व कमज़ोर होते हैं। मकड़ी के जाले नुमा घर में न तो दीवार, न छत और न ही कोई दरवाज़ा होता है। इसलिए यह घर कमज़ोर होता है और किसी भी आपदा व घटना का मुक़ाबला नहीं कर सकता। ज़रा सी तेज़ हवा में बिखर जाता है। पानी की कुछ बूंदें पड़ जाएं तो मकड़ियां भाग जाती हैं।

जो लोग ख़ुदा को छोड़ दूसरों को पूजते हैं और उन पर भरोसा करते हैं, हक़ीक़त में उन्होंने मकड़ी के जाले जैसी कमज़ोर चीज़ पर भरोसा किया है जो घटनाओं के सामने नहीं टिक सकती। इसके मुक़ाबले में जो लोग ईश्वर पर भरोसा करते हैं वह फ़ौलाद जैसी मज़बूत चीज़ की शरण में होते हैं जो हर ख़तरे से सुरक्षित होती है।

अन्कबूत सूरे की बाद की आयतें मूल सिद्धांत को पेश करते हुए ईश्वरीय दूतों से पवित्र क़ुरआन की तिलावत करने और नमाज़ पढ़ने के लिए कहती है।

सूरे अन्कबूत की आयत नंबर 45 में ईश्वर कह रहा है, “जो कुछ आसमानी किताबों में से आप पर उतरा है उसकी तेलावत कीजिए और नमाज़ पढ़िए। इस बात में शक नहीं कि नमाज़ इंसान को बुराइयों से बचाती है। जो कुछ करते हो ईश्वर उसे जानता है।”

नमाज़ एक ओर जहां इंसान को सबसे ताक़तवर प्रतिरोधक कारक अर्थात सृष्टि के स्रोत और प्रलय की याद दिलाती है, दूसरी ओर बुरे काम से रोकने में बहुत ही प्रभावी असर रखती है। जो व्यक्ति नमाज़ के लिए खड़ा होकर तकबीर अर्थात अल्लाहु अकबर कहता है जिसका मतलब है ईश्वर हर चीज़ से महान है, ऐसा शख़्स ईश्वर की नेमतों व अनुकंपाओं की याद में खो जाता है, ईश्वर की प्रशंसा करता है और उसकी मेहरबानियों को याद करता है। नमाज़ पढ़ते वक़्त इंसान को प्रलय के दिन की याद आती है, उससे मदद की दुआ करता है, सीधे मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन चाहता है। ऐसे लोगों के रास्ते पर न जाने के लिए ईश्वर से मदद मांगता है जो पथभ्रष्ट हैं और जो लोग ईश्वर के प्रकोप का निशाना बने।

इस बात में शक नहीं कि ऐसे व्यक्ति के मन में सत्य के मार्ग पर चलने की भावना जागृत होगी जो उसे गुनाहों से रोकेगी।

एक और बिन्दु यह है कि नमाज़, इंसान को गुनाहों से पाक करने और ईश्वर की ओर से क्षमा दिलाने का साधन है। नमाज़ इंसान को प्रायश्चित करने और आत्मसुधार की ओर क़दम बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने अपने अनुयाइयों से पूछा कि अगर तुममें से किसी के घर में साफ़ पानी की कोई नहर हो और हर दिन उससे पांच बार ख़ुद को धुले तो क्या उसके बदन पर कोई गंदगी रहेगी? साथियों ने जवाब दिया, नहीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, “नमाज़ इसी जारी पानी की तरह है। जब इंसान नमाज़ पढ़ता है तो दो नमाज़ों के बीच अगर उसने कोई गुनाह किया है तो वह मिट जाता है। इस प्रकार इंसान के मन पर गुनाह का असर बैठने नहीं पाता।”

नमाज़ की विशेषता यह है कि नमाज़ इंसान की आत्मा को मज़बूत करती है और उसके मन में ईश्वर से डर पैदा होता है। यही कारण है कि जब पैग़म्बरे इस्लाम या इस्लाम की महान हस्तियों के सामने पापी लोगों के बारे में बात करते थे तो वे कहते थे चिन्तित न हो, नमाज़ से उनमें सुधार होगा। इस बात के मद्देरनज़र की नमाज़ दिन में पांच बार निर्धारित अंतराल में पढ़ी जाती है, इंसान को बार बार सचेत करती है और उसकी पैदाइश का उद्देश्य उसे याद दिलाती है।

नमाज़ इंसान में नैतिक अच्छाइयों को पैदा करने और आध्यात्मिक बुलंदी को तय कराने का ज़रिया है क्योंकि नमाज़ इंसान को सीमित भौतिक दुनिया से निकाल कर असीमित दुनिया की ओर ले जाती है। नमाज़ पढ़ने वाला बिना किसी माध्यम के ख़ुद को ईश्वर के सामने पाता है और उससे बात करता है।

सूरे अन्कबूत की पैतालीसवीं आयत में ईश्वर कह रहा है, ईश्वर की याद को वरीयता हासिल है। सैद्धांतिक रूप से चाहे नमाज़ हो या कोई और उपासना, हर उपासना की जान ईश्वर की याद है। नमाज़ में पढ़े जाने वाले सूरे, नमाज़ के विभिन्न हिस्से और नमाज़ की भूमिका सबके सब इंसान के दिल में ईश्वर की याद जगाते हैं।

सूरे अन्कबूत की छियालिसवीं आयत में अन्य ईश्वरीय किताब के अनुयाइयों से व्यवहार के बारे में है। इस आयत में ईश्वर कह रहा है, “किताब वालों से बेहतरीन ढंग से बहस करो।” इस्लामी संस्कृति में दूसरे राष्ट्रों के साथ अच्छे व शांतिपूर्ण संबंध बनाने पर बल दिया गया है। इस आयत में ईश्वर यह कह रहा है कि किताब वालों के साथ शिष्टाचारिक ढंग से तर्क और दलील के साथ बात करो। उनसे बात करते वक़्त मज़ाक़ उड़ाने, हिंसक व्यवहार और अपमानजनक व्यवहार से बचना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस्लाम की नज़र में सभी मत, संस्कृति और राष्ट्र के साथ तर्कपूर्ण बातचीत और विचारों का आदान प्रदान सही है। अलबत्ता यह मुमकिन है कि बहस या विचार विमर्श के वक़्त कभी सामने वाला पक्ष आपके शांतिपूर्ण व्यवहार को आपकी कमज़ोरी समझ बैठे या इतना उद्दंड हो कि यह मानवीय व्यवहार उसके दुस्साहस को और बढ़ा दे। इसलिए इस आयत में किताब वालों के अत्याचारी वर्ग के साथ इस शांतिपूर्ण व्यहवार से अपवाद रखा गया है। इस आयत के अंत में अच्छे ढंग से बहस की एक मिसाल देते हुए ईश्वर कह रहा है, “उनसे कहिए कि जो कुछ ईश्वर की ओर से हम पर और तुम पर उतरा है, हम उस आस्था रखते हैं। हमारा और तुम्हारा ईश्वर एक है। हम उसके सामने नत्मस्तक हैं।”

सूरे अन्कबूत की अड़तालीसवीं आयत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के निमंत्रण के सच होने की एक निशानी उनके पढ़ाई लिखाई से दूर रहने का उल्लेख करती है। अड़तालीसवीं आयत में ईश्वर कह रहा है, “आपने इससे पहले न तो कोई किताब पढ़ी और न ही कुछ लिखा। ऐसा इसलिए है ताकि जो लोग आपकी बात को झुटलाने की कोशिश में हैं कहीं आपकी बात पर शक न करें और यह न कहें कि जो कुछ आप पेश कर रहे हैं वह पहली वाली किताबों के अध्ययन का नतीजा है।” पैग़म्बरे इस्लाम पढ़ना लिखना नहीं जानते थे, लेकिन ऐसी किताब पेश की जो ऐसी निशानियों से भरी पड़ी है कि हर विद्वान हैरत में पड़ जाता है। किन्तु हठधर्म लोग जो पवित्र क़ुरआन की तर्कपूर्ण बातों को मानने के लिए तय्यार नहीं थे पैग़म्बरे इस्लाम का मज़ाक़ उड़ाने लगे जिसका सूरे अन्कबूत की पचासवीं आयत में उल्लेख है। हठधर्म लोग कहने लगे, “क्यों उन पर हज़रत मूसा की तरह ईश्वर की ओर से कोई चमत्कार नहीं है? उनसे कहिए कि चमत्कार ईश्वर के पास है और उसी के आदेश से होता है न कि दूसरे की इच्छानुसार। मैं सिर्फ़ साफ़ तौर पर डराने वाला हूं।”

इसके बाद की आयत में ईश्वर कह रहा है, “क्या यह चमत्कार उनके लिए काफ़ी नहीं है कि हमने आप पर आसमानी किताब उतारी ताकि उनके लिए निरंतर पढ़ी जाए। जान लो कि यह किताब उन लोगों के लिए कृपा है जो ईमान लाए हैं।”

सूरे अन्कबूत की अंतिम आयत में ईश्वर कहता है, “जो लोग हमारे मार्ग में संघर्ष करते हैं, उन्हें अपना मार्ग दिखाएंगे। ईश्वर सदाचारी लोगों के साथ है।”

यह आयत इंसान को इस बात का इतमेनान दिलाती है कि अगर सही रास्ते पर चला जाए तो ईश्वर की ओर से मार्गदर्शन मिलेगा। अलबत्ता ईश्वर के मार्ग तक पहुंचने के लिए कोशिश ज़रूरी है। इस संदर्भ में इन्सान को पहला क़दम उठाना होगा। कभी कभी एक सही क़दम अमर मार्गदर्शन की भूमि समतल करता है।

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