साहित्य

प्रेमपत्र अपनी जगह पहुँच गया!

Kavita Krishnapallavi
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प्रेमपत्र अपनी जगह पहुँच गया!
‘आइडेंटिटी पॉलिटिक्स’ की गलियों से होते हुए भगवा कर्तव्य-पथ (यानी राजपथ) तक पहुँचे भूतपूर्व “वामपंथी” कवि और समाजशास्त्री प्रोफेसर बद्रीनारायण को इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला! यह फल तो उनके झोले में टपकना ही था! भक्ति व्यर्थ नहीं जाती! भगवान के घर देर है अंधेर नहीं है!
अब बस दो या तीन मंज़िलें और पानी हैं ! जी.बी.पंत इंस्टीट्यूट के निदेशक की कुर्सी से उड़कर किसी युनिवर्सिटी के वीसी की कुर्सी पर लैण्ड कर जाना है I 2024 के पहले हो जाये तो और अच्छा! उसके बाद राज्यसभा की सदस्यता या किसी राज्य का राज्यपाल पद या किसी देश में राजदूत, या फिर क्रमशः ये तीनों!
इसबीच कविताओं के संकलन भी आते रहेंगे और उन्हें उत्कृष्ट प्रगतिशील कविता मानकर चयन-संपादन करने वाले राजेश जोशी जैसे वाम कवि शिरोमणियों की भी कमी नहीं I
बहरहाल, अभी तो बाहर लड्डू बँटने और मन में लड्डू फूटने का मौसम है! देखिए किस तरह दक्षिणपंथियों से भी अधिक सभी साहित्यिक लिब्बू और चोचल ढेलोक्रेट जो अपने को प्रगतिशील और जनवादी कहते हैं, मुक्त कंठ से ‘अहो-अहो’ करते हुए बद्री पर बधाइयाँ बरसा रहे हैं! और ‘आइडेंटिटी पॉलिटिक्स’ और दलित विमर्श वाले तो बदरी भाई को अभी भी उसीतरह अपना मानते ही हैं जैसे वे बहनजी और रामदास आठवले को मानते हैं! दोनों हाथों की पाँचों उँगलियाँ और सिर घी में डुबोये बदरी भाई को सभी लिब्बू और चोचल ढेलोक्रेट ईर्ष्या मिश्रित प्रशंसा के साथ निहारे जा रहे हैं!
अजी छोड़िए गुजरात-2002, नरोदा पाटिया, बिल्कीस बानो, मॉब लिंचिंग, सीएए-एनआरसी, नरसंहारों, सामूहिक बलात्कारों, हिंदुत्ववादी फ़ासिज़्म वगैरह-वगैरह की घिसीपिटी बातें! साहित्य में इतने संकीर्णतावादी ढंग से विभाजक रेखाएँ मत खींचिए! इसतरह तो जगूड़ी, आलोकधन्वा, अरुण कमल, राजेश जोशी, बद्री नारायण… आदि को खोते-खोते हम सबको खो देंगे! और फ़ासिज़्म के ख़िलाफ़ हम बीच-बीच में बोलते भी तो रहते हैं! अब बच्चों की जान लोगे क्या! इतना सैद्धान्तिक शुद्धतावाद भी ठीक नहीं! बी प्रैक्टिकल पार्टनर! यही हमारी पॉलिटिक्स है पार्टनर!
बजाओ रे बजाओ! हम कोई सड़क पर ‘जै श्रीराम’ का नारा लगाते हुए दंगा थोड़े न कर रहे हैं!आखिरकार हम सेकुलर लोग हैं! निहायत शालीन ढंग से कुछ गवनई, कुछ कबिताई और कुछ विमर्श कर रहे हैं! अब ईहो ना करें का! देख रहे हो न बिनोद! केतना अती कर रहे हैं! चैन से कुछ कला-साहित्य भी नहीं करने देंगे! हर जगहिए राजनीति अउर बिचारधारा पेल देंगे! हद्द है भाई!