साहित्य

*पत्नी तब तक ही देवी है जब तक पति देवता है वरना तो वो किसी रणचंडी कम नही*

Laxmi Kumawat
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* पत्नी तब तक ही देवी है जब तक पति देवता है वरना तो वो किसी रणचंडी कम नही *
शाम के सात बज चुके थे। आज पड़ोस वाली शालू के घर से जोर जोर से आवाजें आ रही थी। लेकिन ये आवाज हर रोज की आवाज से अलग थी। कुछ तो अलग हो रहा था उसे घर में। बैठे-बैठे बस शिमला कयास ही लगाए जा रही थी।

अक्सर शालू के चिखने चिल्लाने की आवाजें आती थी। वो अपने आप को अपने शराबी पति से बचाने के लिए आवाज से लगाती थी। जबकि पति उसे मारते हुए अपने आप को उसका ‘देवता’, ‘भगवान’ जाने क्या क्या समझता था।

जब शिमला से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने अपने घर के बाहर निकल कर देखा। तो शालू के घर के बाहर भीड़ इकट्ठी थी। जबकि सास वहां खड़े लोगों से मदद मांग रही थी,
” कोई तो बचाओ उसे। यहां खड़े-खड़े क्या तमाशा देख रहे हो। कोई तो मेरी मदद करो”
” क्या हुआ अम्मा जी? काहे शोर मचा रही हो”
अचानक शिमला ने पूछा।

” अरी शिमला बिटिया, अच्छा हुआ तू आ गई। बचा ले। आज तू मेरे बेटे को बचा ले”
” अम्मा शायद आप गलत बोल रही हो। बेटे को नहीं, मेरी बहू को बचा ले। आप यही कहती थी”
शिमला ने जवाब दिया। उसकी बात सुनकर अम्मा बोली,
” अरे ना शिमला। आज बहु को नहीं, आज तो मेरे बेटे को ही बचा ले। आज तो मेरी बहू पर रण चंडी सवार हो गई है। देख कितनी बुरी तरह मेरे बेटे को मार रही है। तुझे तो वो भाभी जी कहती है। शायद तेरी ही बात मान ले। मेरी तो वो आज सुन भी नहीं रही है। मेरी देवी जैसी बहू को आज पता नहीं क्या हो गया है”
अम्मा की बात पर शिमला को यकीन नहीं हुआ। पर अंदर से आ रही ‘बचाओ बचाओ’ की आवाजें तो पुरुष की ही थी। या फिर यूँ कह सकते हैं कि मोहन की ही थी।

आखिर शिमला अंदर गई तो वाकई नजारा बदला हुआ था। शालू पर वाकई रणचंडी सवार थी। बाल बिखरे हुए, साड़ी का पल्लू कमर में खोसे हुए पूरी रणचंडी लग रही थी। जिस लट्ठ से पति हर रोज उसे मारता था, उसी लट्ठ को लेकर अपने पति की अच्छी खासी धुलाई कर रही थी। और साथ ही साथ बोले जा रही थी,

” तू? और देवता? तू तो इंसान कहलाने लायक भी नहीं है। आज तुझे ना छोड़ने वाली मैं। मेरे सीधेपन का बहुत फायदा उठाया है तूने। समझता क्या है अपने आप को? बीवी हूँ तेरी, तेरे घर की नौकरानी नहीं कि तू जो अपनी मर्जी में आएगा वो करेगा”

तब तक अम्मा जी शालू के सामने आकर गिड़ गिढ़ाते हुए बोली,

” अरे शालू, तू तो देवी है। अपने पति की कितनी सेवा करती है। उसके लिए कितने व्रत और उपवास करती है। उसे देवता का स्थान देती है। और तू ही आज लट्ठ से उसे मार रही है”

” अम्मा जी पत्नी देवी तब तक ही होती है जब तक पति देवता होता था। पर आपका ये राक्षस बेटा तो मेरी छाती पर सौतन लाकर बिठाए दे रहा है। और मैं इसे देवता मानकर पूजती रहूँ। काहे अम्मा जी, हाथ पैर तोड़ कर ना बिठा दूँ उसे”
कहती कहती शालू लट्ठ लेकर मोहन पर वार करने लगी तो शिमला ने आकर उसे रोक लिया,
” अरे बस कर शालू। कितना मारेगी। देख मार मार के सुजा दिया उसको तूने। आखिर बात क्या हो गई? तेरे लिए तो तेरा पति देवता था ना? फिर आज क्यों मार रही है उसे”

” देवता? ये राक्षस, और देवता? मैंने इस जैसे निकम्मे इंसान को भी अपना देवता माना। अपने सिर आंखों पर बिठाया। इसकी मार खाई पर हमेशा ये सोच कर चुप रह गई कि कम से कम इसके नाम का सिंदूर तो मेरी मांग में है। कम से कम मैं सुहागन तो हूं। ये मुझे कितना मारता था। फिर भी इसके परिवार को अपना मानकर हमेशा मैने अपनी जिम्मेदारी निभाई। लेकिन ये? ये मेरी छाती पर सौतन लेकर आ गया। और लाकर उसे मेरे ही कमरे में मेरे ही बिस्तर पर बिठा दिया। ऊपर से डंके की चोट पर कह रहा है कि उससे शादी करूंगा”

कहते हुए शालू की आंखों से आग बरस रही थी। आखिर गलत भी नहीं कह रही थी। कितनी बुरी तरह से मोहन मारता था उसे, पर फिर भी उसे सिर आंखों पर बिठाए रखती थी। और ये तो शिमला ने उस दिन अपनी आंखों से साक्षात देखा था।

उस दिन शालू रसोई में काम कर रही थी जबकि शिमला उसकी सास के पास बैठकर बातें कर रही थी। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

” इस समय कौन आया होगा? काम भी नहीं करने देते हैं। हमेशा काम के समय ही कोई ना कोई आ जाता है”
कहती कहती शालू ने जाकर दरवाजा खोला तो सामने मोहन खड़ा हुआ था। खड़ा क्या था, लड़खडा रहा था। ना आंखें पूरी तरह से खुल रही थी और ना ही पैर जमीन पर टिक रहे थे। पूरी तरह से शराब के नशे में धुत्त था। उसे देखते ही शालू बोली,

” अरे इतनी शराब क्यों पीते हो तुम? खुद के पैरों पर भी खड़े नहीं रह पाते “
” तुझे क्ऽऽया पता? मेऽऽरे दिमाग में कितनी टेंशन है?”

मोहन अपनी लड़खड़ाती जबान से बोला।
” टेंशन तो मुझे भी होती है। राशन की टेंशन, बच्चों के स्कूल की टेंशन, घर के काम की टेंशन, सास की तबीयत की टेंशन, ऊपर से पति शराब पीता है उसकी टेंशन। तो तुम्हारी तरह क्या शराब पीकर टल्ली हो जाऊँ? जो बस बहाना कर दिया कि मेरे दिमाग में कितनी टेंशन है”

बड़बड़ाती हुई शालू मोहन को सहारा देकर घर में ले आई।

” चुऽऽऽप कर। कोऽऽई अपने देवता से ऐऽऽसे बात करता है। याद रख तेरी मांग में मेरा सिंदूर है। पति हूं मैं तेरा। तेरा देवता”

शालू ने चुप रहना ही ठीक समझा। और मोहन को बाहर वाले पलंग पर लेटा कर वापस रसोई में आ गई। और उसके लिए पानी का गिलास लेकर गई। बस यही बात मोहन ने पकड़ ली,

” क्यों री ,मुझे बस पानी पिलाएगी तू। आदमी बाहर से कमा कर थका हारा घर में आया है तो बजाए उसे खाना खिलाने के, पानी पिला रही है तू”
कहते-कहते मोहन ने उसके हाथ से पानी का गिलास लिया और जोर से जमीन पर फेंक दिया। ये देखकर अम्मा जी बोली,
“अरे रोटी बना ही तो रही है। दो पाँच मिनट बैठ, वो रोटी लेकर आ रही है”
” अम्मा बीच में मत बोल। काहे दो पांच मिनट बैठूँ। इस घर में इसे रोटी बनाने के लिए ही तो लाया हूं। मुफ्त की रोटी खिलाने के लिए नहीं”

अम्मा की बात सुनकर मोहन भड़कते हुए बोला। ये देखकर शिमला तो वहां से जाने को हुई। पर इतने में मोहन का लट्ठ उठा कर शालू को पीटने लगा।

शिमला तो ये देखकर हक्की बक्की रह गई। जबकि अम्मा जी उसे अपने बेटे के कोप से बचाने की कोशिश करने लगी। तो उसने अम्मा को ही धक्का देकर एक तरफ कर दिया।

किसी तरह शालू ने भाग कर रसोई का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। लेकिन मोहन? वो तो रसोई के दरवाजे को ही पीटे जा रहा था। जबकि शिमला ने कभी अपनी जिंदगी में ये सब नहीं देखा था तो उसे समझ ही नहीं आया कि वो करें क्या। आखिर थक हर कर मोहन खुद ही पलंग पर आकर गिर गया।

थोड़ी देर बाद जब शांति हुई तो शालू ने खुद ही दरवाजा खोल लिया। शिमला ने कुछ मदद के लिए कहा तो शालू बोली,
” आप रहने दो भाभी जी। ये तो इनका रोज का है। अब बस हम भी खाना खाकर सोएंगे”
शालू ने इतनी आसानी से ये सब कह दिया कि शिमला को कुछ समझ ही नहीं आया। वो चुपचाप अपने घर आ गई।
दूसरे दिन वट सावित्री व्रत था। जब वो मंदिर पूजा के लिए गई तो वहां शालू को देखकर हैरान रह गई। शालू पूरा श्रृंगार कर वट सावित्री की पूजा करने आई थी। शिमला तो एक पल सोचती ही रह गई कि अगर मेरा पति मेरे साथ ऐसा करे तो मैं तो कभी उसके लिए पूजा ना करूं। और ये?

” शालू तुमने भी व्रत रखा है?”
शिमला के मुंह से अचानक निकल ही गया।

” हां भाभी जी, आखिर मैं भी सुहागन हूं। मैं भी तो अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखूंगी”

” पर कल तो उसने…”
कहते-कहते शिमला चुप हो गई।

“अब भाभी जी मारता है पीटता है, पर जैसा भी है मेरा पति है। मेरे लिए देवता है वो। वो है तो ही तो समाज में मेरा सम्मान है”
कहकर शालू पूजा करने लगी। शिमला तो उसे देखती ही रह गई। पति इतना मारता था पर फिर भी पता नहीं किस मिट्टी की बनी थी शालू, कभी उसको छोड़कर नहीं जाती। एक दो बार उससे पूछा भी।

तब पता चला कि बचपन में उसके सिर पर से पिता का साया उठ गया था। मां को दुनिया से लड़ते देखा था उसने। तरह-तरह के ताने सुनते देखा था उसने। लोगों की गंदी नियत किस तरह से उसकी मां को कचोटती थी, वो भी देखा था उसने। परिवार वाले किस तरह से मुंह फेर लेते हैं, वो भी देखा था उसने।

बस तब से मन में यही विचार धारण किए बैठी थी कि जब तक पति है, चाहे कैसा भी है मान सम्मान तो है।

आपकी मांग में सिंदूर है तो किसी की बुरी नजर आपको नहीं कचोटेगी। बस इसीलिए अपने पति को देवता मानती थी।

खुद एक फैक्ट्री में काम करती थी। लेकिन सुबह भी घर का पूरा काम करके जाती और वापस आकर घर के काम में लग जाती। अम्मा जी से जितनी मदद होती वो कर देती। शादी के पाँच साल हो गए थे। एक दो साल का बेटा भी था। जो अक्सर ये सब तमाशा देखकर डरा सहमा सा रहता था। पर मोहन इस तरह से करेगा किसी को यकीन नहीं हुआ।

शालू के लिए सौतन लेकर आ गया। इतने में अम्मा जी बोली,
” क्या सोच कर लाया रे तू उस लड़की को इस घर में। याद रख अगर तूने उससे शादी की तो तेरा इस घर से दाना पानी उठ जाएगा”
” काहे अम्मा, वो मुझे पसंद है। मैं तो उसे ही शादी करूंगा”
मोहन बेशर्मों की तरह बोल पर अबकी बार शालू से पहले अम्मा बोली,
” कर, बिल्कुल कर। पर आज के बाद तू मेरा बेटा नहीं और इस मकान पर तेरा हक नहीं”
” अम्मा तू मुझे मेरे ही घर से निकल रही है”
मोहन हैरान होते हुए बोला।
” अरे! तेरा काहे का घर। ये घर तो तेरे बाप ने खरीदा था। इसलिए इस पर मेरा हक है। अब तुझ जैसे फकीर के साथ वो शादी करना चाहती है तो कर। मैं अपनी बहू के साथ रह लूंगी। जा निकल यहां से”
” हां हां, जा रहा हूं मैं। अपने दम पर खुद ही मकान बना लूंगा। पर शादी तो उसी से करूंगा”
ये सारा तमाशा तो वो लड़की भी देख और सुन चुकी थी। जैसे ही मोहन ने उसे बुलाया, उसने बाहर आकर जवाब दिया,

” तेरे पास है ही क्या जो मैं तुझसे शादी करूंगी। महीने का बीस हज़ार रुपए कमाता है। अब ना तेरे पास कोई प्रॉपर्टी, ना कुछ। मुझे अपनी जिंदगी बर्बाद थोड़ी ना करनी है। मुझे तो माफ कर “
वो हाथ जोड़ती हुई मोहन को छोड़ भाग खड़ी हुई।
उस लड़की के इस बर्ताव से मोहन को करारा झटका लगा। पर अब जाए तो जाए कहाँ। उसने पलट कर शालू की तरफ देखा तो शालू ने कहा,
” ना, अब मुझे देवी बनने का शौक नहीं है। तुम्हें इस घर में रहना है तो इज्जत से रहो। अम्मा ने मेरा साथ दिया है उनका गलत नहीं करूंगी। पर अब मुझसे ज्यादा उम्मीद मत करना। पति हो पति ही बनकर रहो, देवता बनने की कोशिश मत करना”

कहकर शालू अपने बेटे को लेकर अंदर चली गई। मोहन उसी घर में रहता है। पर अब शालू उसे इतना ज्यादा तवज्जो नहीं देती। एक दो बार शराब पीकर घर में घुसकर हंगामा करने की कोशिश की थी। तो शालू ने उसे पुलिस के हाथों पिटवा दिया। अपने आप मोहन को अक्ल आ गई कि पत्नी अब उसे देवता नहीं, इंसान ही समझती है।

मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
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