साहित्य

वो रात-कमजोर ह्रदय के प्राणी ज़रूर पढें इस महा भयंकर गाथा को

अनुज सारस्वत ·
=============
वो रात
*************
(डिस्क्लेमर-कमजोर ह्रदय के प्राणी जरूर पढें इस महा भयंकर गाथा को)
जनवरी की उस शाम धारासार बरसात शुरू हो गई थी. वह नखशिख भींगा हुआ था और जंगल में पेड़ के नीचे खड़ा कांप रहा था, तभी जोर की बिजली कड़की और उसने देखा, उस पेड़ के ठीक पीछे एक मकान था।
वह मकान लकड़ी का टूटा हुआ था, लेकिन कुछ रोशनी सी चमक रही थी।उस रोशनी ने उसे आकर्षित किया वह मानों स्वतः खिंचा चला गया उस ओर।
चररररर की आवाज के साथ दरवाजा खोला।अंदर पैर रखा तो एक बूढ़ी आवाज आयी
“आओ दिनकर भीग गये हो पीछे कुर्सी पर तौलिया रखा है पोंछ लो”
एकाएक वो चौंका इतने गहरे जंगल में वह कभी नही आया था संयोगवश आना हुआ और दूर देश में उसे उसके नाम से पुकारने वाली वो बूढ़ी आवाज कौन है? हजार प्रश्न मन में उठे।फिर हिम्मत करके हुए कांपती हुई आवाज में बोला
“क क कौन हो तुम?और मेरा नाम कैसे जानती हो?”
वो बूढ़ी आवाज हँसी
“हा हा हा विधि का लेखा किससे किसको मिलवा दे? कब मिलवा दे? कौन जाने ?”
अब तो दिनकर के पैरों तले जमीन खिसक गयी उसने दबे पाँव भागने की कोशिश की
दरवाजे की तरफ,दरवाजा खटाक की आवाज से स्वतः बंद हो गया और खिड़कियों से हवा भी डरावना रूप लेकर साँय साँय की आवाज में अंदर आने लगी।
अब तो दिनकर का कलेजा मुँह को आगया डर से।आँसू की धार उसके गालों को चीरती हुई गिर पड़ी रोती हुई आवाज में दया की आवाज में अपनी स्थानीय भाषा में बोला (क्योंकि डर में असली भाषा ही प्रकट होती है)
“अरे ससुरी कौन है तू दियारी मेरो काहे खून पी रही,मोये मारनो है तो मार दे जों खेल ना कर”
उस बूढ़ी आवाज ने कहा
“इंसान के कर्म पीछा नही छोड़ते।”
इतना कहते ही फर्श में एक रोशनी के साथ ढक्कन खुला और एक सीढ़ियों का रास्ता प्रकट हुआ।
दिनकर ना चाहते हुए भी किसी अदृश्य शक्ति के खिचांव के साथ उस तहखाने नुमा स्थान में घुसता चला गया।
दिनकर का पूरा शरीर छिलता जा रहा था और मुँह से पीड़ादायक शब्द निकलरहे थे
“अरे मोरी मैया मर गओ मै तो छोड़ दे मोय नासपीटी, क्यों मार रही मोय?मैनें का बिगाड़ो तेरो?”
वो बूढ़ी आवाज अट्टहास करती जा रही थी और कहती जा रही थी
” सब याद आयेगा तुझे कि कौन हूँ?”
तहखाने में पहुंचते ही दिनकर के शरीर पर लात घूंसो की बारिश होने लगी और अब लगभग 10-15 आवाजें आदमी औरतों की आने लगी भयंकर ऐसे
“आगया अब तुझे हम नही छोड़ेंगे हाहाहा”
दिनकर इतनी मार खाने के बाद बेहोश हो चुका था।तहखाने का गेट बंद हो चुका था।
लगभग 1 घंटे बाद दिनकर को होश आया उसने खुद को उल्टा लटके पाया कपड़े फाड़ दिये थे सिर्फ अंत वस्त्र था शरीर पर।
होश में आते ही कोड़े पड़ने लगे।
इतने कष्ट में वो बोला
“अरे मोरी अम्मा अब तो बता दे काहे मार रही कौन है तू मै मर जाऊंगो और पता भी ना पड़ेगी कि क्यों मरो मैं ?”
तभी वो बूढ़ी आवाज बोली
“याद कर आज से 25 साल पहले झुमकी को याद कर”
“कौन झुमकी जै कौन थी?”दिनकर बोला
इतने में गाल पर जोरदार तमाचा पड़ा उसके गाल पर और बूढ़ी आवाज गुस्से से बोली।
“तू भूल गया झुमकी को ऐसे याद नही आयेगा इसके शरीर पर गर्म पानी डालो”
“अरेएएएएएए मोरी मैया मैं सच कह रहो मै ना जानतो “
फिर दिनकर को वो हिलाने लगे सर फूटा उसका किसी चीज से वो बोला
“आगया तुझे याद तो नही आया तो सुन
तुम और झुमकी एक स्कूल में पढ़ते थे कक्षा 10 में।झुमकी बहुत सीधी सादी लड़की थी।तू बहुत कमीन था।उसके पीछे हाथ धोकर पड़ा था।वो बहुत परेशान रहती थी तुझसे लेकिन घर पर किसी से कुछ नही कहती थी लेकिन तेरी हरकतें बड़ती जा रही थी।कभी उसके साईकिल की हवा निकाल देता कभी उसका रास्ता रोक देता सड़क पर और हीरोगिरी दिखाता।जवानी के शुरूआत के दिन थे तुम दोनों के तू उसके शरीर को भी छेडछाड करता था।एक दिन उसने विरोध किया तो तूने उसकी टक्कर करा दी थी बहुत चोट आयी थी उसे लेकिन घर आकर उसने किसी को कुछ नही बताया बस सहती रहती थी।लेकिन एक बार तो तूने हद ही कर दी थी।झुमकी के भाई ने तुझे परेशान करते हुए देख लिया था अगले दिन तुझे जमकर कुटवाया था पूरी गली में झुलूस निकाला।कुछ दिन मामला शांत रहा।फिर तो तूने हद कर दी एक दिन चुपचाप झुमकी के घर में रात को घुसा था ।घर में 15-20 लोग रहते थे संयुक्त परिवार था लेकिन झुमकी उस दिन मामा के यहाँ गयी थी।तूने सीमा को झुमकी समझा अंधेरा था लालटेन जल रही थी उसके मुंह पर हाथ रख खींचकर ले जा रहा था तो लालटेन गिर पड़ी और घर में आग लग गई तू भाग गया जबतक सब जगते पूरा घर जल गया।और जानता है वो 15-20 लोग कौन थे वो थे हम सब लोग मैं झुमकी की दादी बहुत बेहशीपना सूझा है ना तुझे आज तेरी लाश जलेगी।और तू यहाँ खुद आया नही लाया गया है तेरा ट्रान्सफर कराया गया ,तेरी गाड़ी का खराब होना कोई संयोग नही था कोई भी तेरी मदद को नही आ रहा था इसलिए फिर तेरा इस खाई में गिरना पेड़ के सहारे टिक जाना फिर इस घर में आना यह वही जला हुआ घर था समय के साथ यहाँ सन्नाटा हो गया क्योंकि हम लोगों की आवाजें पूरे गाँव में गूंजती और लोगों ने पूरा गांव खाली कर दिया इसीलिए यह वीराना हो गया ।हा हा हा हा आज हम सबकी आत्मा को मुक्ति मिलेगी।”
यह सब सुनकर दिनकर बोला
” हमें कुछ कहना है।आपने जो कहानी सुनाई।हमारो कछू लेना देना ना है।हम ना जानते काई झुमकी को तुम खुद सोचो मरने को आय हम काय झूठ बोलेंगे?”
इतने में एक और झापड़ पड़ा
“तू शुरू से ही धूर्त और झूठा है कुछ भी कर सकता है अब मरने को तैयार होजा”
वो बूढ़ी आवाज बोली
इतने में बहुत तेजी के साथ दरवाजा खुला कोई साया अंदर दाखिल हुआ
और तेज आवाज में बोला
“अम्मा रूक जाओ गड़बड़ हो गयी है ये वो दिनकर नही है हमसे गलती हो गयी यह तो दूसरे गाँव का है अम्मा माफ कर दो हम भूतों से भी गलती हो सकती”
अबतो यह सुनकर दिनकर की हालत और बुरी हो गई और रोते हुए बोला
“अरे भूतनियों के शुरू से कह रहे हम ना हे हम नाहे लेकिन सालों तुम सूते ही जा रहे खाल खींच लई अरी मोरी मैया मार डालो मोय सालों तुम्हें ना मिलेगी मुक्ति कभी जबरिया झुमकी की कहानी चिपका दिये और हमें पेल दिये “
फिर बूढ़ी आवाज बोली
“अरे बेटा माफ करियो वो हमने नया मुनीम रखा है तो हिसाब किताब में गडबड़ी हो गयी।”
इतना कहते ही एक दर्द भरी आवाज गूंजने लगी क्योंकि मुनीम जी जो कुट रहे थे उन 15-20 लोगों के हाथों।
-अनुज सारस्वत की कलम से
(स्वरचित एवं मौलिक)